कौन थे टीका लाल टपलू? BJP ने कश्मीरी पंडितों की ‘घर वापसी’ योजना का नाम उनके नाम पर क्यों रखा?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए जारी बीजेपी के ‘संकल्प पत्र’ या घोषणापत्र में कई बातें शामिल हैं. इनमें घाटी से आतंकवाद का सफाया करना, हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों को फिर से बनाना और सरकार के लिए काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को नियमित करने जैसे वादे किए गए हैं. लेकिन सबसे खास बात यह रही कि पार्टी ने अपने मुख्य वोट बैंक कश्मीरी पंडितों को लुभाने की कोशिश की है. बीजेपी ने सरकार बनने पर टीका लाल टपलू विस्थापित समाज पुनर्वास योजना (TLTVSPY) के जरिये कश्मीरी पंडितों की ‘घर वापसी’ का वादा किया है. बहरहाल कश्मीर के बाहर के लोगों में ये जानने की उत्सुकता है कि टीका लाल टपलू कौन हैं? बीजेपी ने योजना का नाम उनके नाम पर क्यों रखा?
टीका लाल टपलू अपने दौर में कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े नेता, पेशे से वकील और घाटी के शुरुआती भाजपा नेताओं में से एक थे. उनकी हत्या यासीन मलिक के जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकवादियों ने की थी. टपलू सही मायनों में एक अखिल भारतीय शख्स थे. उनका जन्म श्रीनगर में हुआ था, उन्होंने पंजाब और उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा हासिल की. मगर वे आखिरकार जम्मू और कश्मीर में काम करने वापस आ गए. वैश्विक कश्मीरी पंडित डायस्पोरा के अंतरराष्ट्रीय समन्वयक उत्पल कौल याद करते हुए बताते हैं कि ‘वे कश्मीरी पंडितों के एक बड़े नेता थे. वे 1967 में हमारे आंदोलन और बाद में इमरजेसी के दौरान कई बार जेल गए. वे घाटी में भाजपा के उपाध्यक्ष बने, लेकिन कई कश्मीरी पंडितों की तरह उन्हें भी गोली मार दी गई.’
टीका लाल टपलू का RSS से गहरा जुड़ाव
टीका लाल टपलू का बीजेपी से जुड़ाव होने के साथ-साथ आरएसएस में भी गहरी जड़ें थीं. इसलिए पंडितों की घर वापसी के लिए बीजेपी की योजना का नाम देने के लिए वह एक आदर्श विकल्प बन जाते हैं. जब बीजेपी अपने शुरुआती दौर में थी, तब टपलू का निजी करिश्मा भाजपा से कहीं ज्यादा था. कम से कम जम्मू-कश्मीर में तो ऐसा ही था. 12 सितंबर, 1989 को चिंकराल मोहल्ले में उनकी हत्या की नाकाम कोशिश की गई. कुछ दिनों बाद आतंकवादियों को सफलता मिल गई. जब टपलू जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट गए तो उन पर तीन आतंकवादियों ने करीब से आठ राउंड फायरिंग की. जिसके बाद से घाटी में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का एक लंबा और दर्दनाक दौर शुरू हो गया. हिंसा जल्द ही बढ़ गई, जिसके कारण अगले कुछ साल में कश्मीरी पंडित समुदाय के लगभग 97 फीसदी लोग कश्मीर घाटी से पलायन कर गए.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.