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स्वतंत्रता का सही अर्थ : कानून का ज्ञान और समाज की वास्तविक आज़ादी

(मौजपुर से विशेष संवाददाता)

15 अगस्त 2025, भारत की 79वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ पर मौजपुर क्षेत्र में मोहल्ला सुधार समिति, सामाजिक सुधार उत्थान समिति और #कानून_का_कायदा_एक_पहल के संयुक्त तत्वावधान में एक विशेष तिरंगा रैली एवं गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर क्षेत्र के गणमान्य नागरिकों के साथ बड़ी संख्या में बच्चों, महिलाओं और युवाओं ने भाग लिया। कार्यक्रम में केवल तिरंगा लहराने तक सीमित न रहते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार जैसे प्रमुख मुद्दों पर गंभीर चर्चा की गई।

स्वतंत्रता का असली अर्थ
सभा में वक्ताओं ने कहा कि

स्वतंत्रता का सही अर्थ यह है कि हम अपनी नैतिक और मौलिक स्वतंत्रता का आनंद लेते हुए किसी और को कोई अनैतिक या अवैध असुविधा न पहुँचाएँ।
उदाहरण के लिए – “आपके हाथ की स्वतंत्रता वहीं तक खत्म होती है जहाँ से वह दूसरे की नाक तक पहुँच सकती है।” अर्थात, मेरी स्वतंत्रता वहीं तक मान्य है जहाँ तक किसी दूसरे की स्वतंत्रता बाधित न हो।

छोटी-सी असावधानी भी किसी को चोट पहुँचा सकती है और कानूनन जेल तक ले जा सकती है। साथ ही वक्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान और कानून प्रत्येक नागरिक को अपने और दूसरों के जीवन व संपत्ति की रक्षा हेतु उचित बल प्रयोग का अधिकार देते हैं, और यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता।

शिक्षा में “लीगल स्टडीज़” की अनदेखी
कार्यक्रम में विद्यार्थियों और अभिभावकों की ओर से यह बड़ा सवाल उठाया गया कि स्कूलों और सरकार ने Legal Studies जैसे अति महत्त्वपूर्ण विषय को 2013 से अब तक गंभीरता से नहीं लिया। जबकि यह विषय बच्चों में कानून की समझ और उसके पालन की आदत डालने के लिए अनिवार्य होना चाहिए।

अक्सर बच्चों के अनुभव बताते हैं कि केवल किताबों में सुधारात्मक बातें लिख कर छोड़ दी गईं, पर व्यवहार में उन पर अमल नहीं हुआ। यही कारण है कि आज कानून का ज्ञान आम नागरिक से दूर होता जा रहा है।

महिलाओं और पुरुषों की चुनौतियाँ
सभा में सामाजिक मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा की गई।

  • महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई कि गर्भ से लेकर कार्यस्थल तक एक महिला पूर्ण सुरक्षित महसूस नहीं करती।
  • वहीं दूसरी ओर, समाज में झूठे दहेज व दुष्कर्म के मुकदमों के जरिए एल्युमनी वसूलने को लेकर भी आक्रोश सामने आया। वक्ताओं के अनुसार, ऐसे मामलों ने कई पुरुषों को इस कदर त्रस्त किया है कि वे आत्महत्या तक को विवश हो रहे हैं, जिसके समाधान हेतु पुरुष आयोग की माँग उठाई जा रही है।

कानून शिक्षा से अपराध पर रोक
चर्चा के दौरान यह निष्कर्ष निकला कि यदि स्कूलों में बच्चों को अनिवार्य रूप से कानून विषय की शिक्षा दी जाए, तो समाज में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के विरुद्ध बढ़ते अपराधों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है।

कानून का असली उद्देश्य केवल अपराधी को दंडित करना नहीं है, बल्कि नागरिकों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों में संतुलन स्थापित करना भी है। वक्ताओं ने कहा, “सही मायनों में समझदारी, कानून को जानने और उसका पालन करने में है। यही एक भ्रष्टाचार-मुक्त और सुरक्षित समाज का रास्ता है।”

CBSE की पहल, पर अधूरापन बाकी
हाल ही में CBSE ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए आने वाले सत्र से नए कानूनों को लीगल स्टडीज़ विषय की किताबों में शामिल करने और स्कूलों में पढ़ाने का निर्णय लिया है।

लेकिन बच्चों ने खुलकर सवाल रखा –

“सिर्फ विषय जोड़ने से बात नहीं बनेगी, सरकार को इसके लिए प्रशिक्षित लॉ ग्रेजुएट शिक्षकों की भी नियुक्ति करनी चाहिए। तभी वास्तविक लाभ मिलेगा।”

निष्कर्ष : सच्ची स्वतंत्रता कहाँ से मिलेगी?
कार्यक्रम का समापन इस विचार के साथ हुआ कि—
“जिस देश में अपने ही स्कूल बच्चों को देश का कानून न पढ़ाएँ, वहाँ सच्ची स्वतंत्रता की अनुभूति कैसे हो सकती है?”

युवाओं और बच्चों की यह आवाज़ समाज और सरकार तक पहुँची है, अब देखना यह है कि आने वाले वर्षों में इसे कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है।

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