श्रमिकों की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला तंत्र दिल्ली के जॉइंट लेबर कमिश्नर कार्यालय में प्रवेश करते ही एक दयनीय दृश्य सामने आता है।
दिल्ली के जॉइंट लेबर कमिश्नर कार्यालय: श्रमिकों की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला तंत्र दिल्ली के जॉइंट लेबर कमिश्नर कार्यालय में प्रवेश करते ही एक दयनीय दृश्य सामने आता है। अलमारियां धूल से पटी हुई हैं, फाइलें अस्त-व्यस्त पड़ी हैं। यह वह कार्यालय है जिससे श्रमिकों को न्याय की उम्मीद होती है, लेकिन यहाँ की स्थिति यह बताती है कि न्याय पाना कितना मुश्किल है। 10 बजे कार्यालय खुलने का समय होता है और नोटिस में भी यही समय दिया गया था, लेकिन आरटीआई अपील के लिए आए लोगों को साढ़े दस से बारह बजे तक तक अधिकारी का इंतजार करना पड़ा। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि अधिकारी अपने काम के प्रति कितने गंभीर हैं। दिल्ली में श्रमिकों के लिए न्याय पाना आसान नहीं है। लेबर कमीशन एक उम्मीद की किरण तो जगाता है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता इस उम्मीद पर पानी फेर देती है। जॉइंट लेबर कमिश्नर गुरमुख सिंह जी का कार्यालय इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। यह कार्यालय एक सरकारी कार्यालय है, हो सकता है पीछे से फंड न आने की वजह से ऑफिस की हालत अच्छी ना हो लेकिन अधिकारी अपने चैंबर फाइव स्टार होटल जैसा बना पाते हैं यह बड़ा सवाल। है, जबकि बाकी कार्यालय में अव्यवस्था चरम पर है। जब लोग 10 बजे कार्यालय पहुंचते हैं तो कोई भी कर्मचारी मौजूद नहीं होता। अगर कार्यालय 11 बजे खुलता है तो लोगों को 10 बजे क्यों बुलाया जाता है? यह सब सिर्फ लोगों को परेशान करने के लिए किया जाता है। यह स्थिति श्रमिकों के लिए बेहद निराशाजनक है। वे न्याय के लिए दर-दर भटकते हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। इस तरह की व्यवस्था में श्रमिकों का भविष्य अंधकारमय ही नजर आता है। यह स्थिति निम्नलिखित सवाल खड़े करती है: क्या श्रमिकों को न्याय मिलना इतना मुश्किल है? क्या अधिकारी अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर नहीं हैं? क्या सरकारी कार्यालयों में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है? इन सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है। सरकार को श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। अधिकारियों को जवाबदेह बनाना होगा और कार्यालयों में पारदर्शिता लाना होगा तभी श्रमिकों को न्याय मिल सकता है और वे एक सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं।
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