दंगों पर दिल्ली पुलिस की चार्ज शीट एक पैरोडी स्क्रिप्ट है जो यह बताने में जुटी है कि बॉस इज़ ऑलवेज राइट
छह माह की खूब गहन जांच ! और, इस खूब गहन जांच के बाद दिल्ली के दंगों के बारे में दिल्ली पुलिस ने आखिर खोज ही निकाला कि उसके बॉस दरअसल एकदम सही कह रहे थे !
गृहमंत्री तो सदन (लोकसभा) में बहुत पहले यानि 11 मार्च को ही अपना फैसला सुना चुके थे कि दिल्ली में दंगे किस वजह से हुए. पहले उनका कहना था कि ये दंगे स्वतस्फूर्त थे लेकिन अपने वक्तव्य से पलटते हुए अब उनको लग रहा था कि ये दंगे सीएए-विरोधी धरना-प्रदर्शन से जुड़ी एक गहरी साजिश का नतीजा थे. उन्होंने उमर खालिद के एक भाषण के कुछ हिस्सों का जिक्र किया और उसके संगठन युनाइटेड अगेन्स्ट हेट को मुख्य साजिशकर्ता करार दिया. मतलब, जो दिल्ली दंगे के मुख्य पीड़ित हैं वहीं दरअसल दंगाई हैं !
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने 16 सितंबर को दाखिल अपनी विशालकाय चार्जशीट में बिल्कुल यही चीज खोजकर पेश की है. इस चार्जशीट का महीनों से इंतजार किया जा रहा था और चार्जशीट ऐसी है कि उसे सभी चार्जशीटों की जननि कहना उचित प्रतीत होता है. इसमें 700 से ज्यादा खास एफआईआर को एक में जोड़ने-गूंथने वाली महाकथा बुनकर परोसी गई है. यह एकलौता मामला है जिसमें मिजाज से निहायत सख्त यूएपीए कानून को आधार बनाया गया है. ध्यान रहे कि ये कानून देश की संप्रभुता की रक्षा के निमित्त बनाया गया था. अगर हिन्दुस्तान मे ली जाने वाली परीक्षाओं को नजीर मानें (जिसमें लिखा क्या गया है ये उतना मायने नहीं रखता जितना ये कि कितना लिखा गया है) तो चार्जशीट बड़ी असरदार मानी जायेगी. जी हां, आपको शायद यकीन ना आये लेकिन चार्जशीट कुल 17,000 पन्नों की है और इन 17000 पन्नों में से कुल 2600 पन्नों में मुख्य कथा परोसी गई है ! मतलब तकरीबन 1 जीबी डेटा में ये बताया गया है कि हाकिम हमेशा सही होता है. अंग्रेजी में कहते हैं ना: बॉस इज ऑलवेज राइट !
कहानी का प्लॉट पहले ही दिया जा चुका था. उस खांचे में कहानी तैयार करने भर की जरुरत थी. कहानी के हिसाब से सबूत गढ़ने थे. ढेर सारे सबूत ऐन आंखों के आगे थे लेकिन उन्हें करीने से किनारे लगा दिया गया. कुछ संवाद जोड़ने की जरुरत थी और कुछ अन्य जरुरी कलाकारी करनी थी. चार्जशीट में ये काम बड़ी कर्तव्य-परायणता से किया गया है और ये मानकर चला गया है कि चार्जशीट के पाठकगण और अदालत अपने अविश्वास को जेहन से परे करते हुए पूरी कथा पर यकीन करने के लिए बस एकदम से तैयार बैठे हैं.
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