जहाँ कोई वसीयत नहीं है, वहाँ कोई भी वारिस बन जाता हैं।
जहाँ कोई वसीयत नहीं है, वहाँ कोई भी वारिस बन जाता हैं।
खन्ना 65 साल के थे, और लगभग २० करोड़ की सम्पति के मालिक थे, जब 2014 में उनकी बिना किसी वसीयत के मौत हो गई थी।अपने जीवन का अधिकांश समय अकेले रहने के कारण, एक किराने की दुकान के मालिक अरविंद ढींगरा ने उनका अंतिम संस्कार किया।कोई भी वारिस न होने पर उनकी संपत्तियां दिल्ली सरकार की हिरासत में चली गईं।
2017 में, अरविंद ढींगरा ने एक वसीयत तैयार की और खन्ना के वारिस होने का दावा किया और अदालत ने भी उनके पक्ष में प्रोबेट का फैसला किया। यह मामला तब तक बंद था जब तक श्री संजय दीवान, प्रशासक जनरल और दिल्लीसरकार के एनसीटी डिपार्टमेंट के आधिकारिक ट्रस्टी ने इसकी रिपोर्ट नहीं की थी परन्तु दिल्ली सरकार के पूर्व प्रशासक ने इन सम्पतियो के बारे में अपने संदेह व्यक्त किया और जांच शुरू की
इसके बाद ढींगरा के द्वारा दी गयी वसीयत के हस्ताक्षर को फोरेंसिक और लिखावट विश्लेषण के लिए भेजा गया था, और हस्ताक्षर को जाली निकले । पुलिस ने ढिंगरा को जालसाजी, धोखाधड़ी और अदालत को गुमराह करने के आरोप में गिरफ्तार किया और खन्ना के कानूनी उत्तराधिकारी खोजने के लिए खोज शुरू हुई।
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