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अपरहण कर हत्या के मामले साढ़े नौ सालो से न्यायालय ने जमानत के लिए भी सक्षम नही माना था अब हुए बरी,

अपरहण कर हत्या के मामले साढ़े नौ सालो से न्यायालय ने जमानत के लिए भी सक्षम नही माना था अब हुए बरी,

मामले में आरोपी प्रदीप साढ़े नौ साल न्यायिक हिरासत में जेल में रहा, न्यायालय से बरी होने पर अब बाहर आया तो उस पर बेटा उसे पहचान नहीं पाया। पिता की जो फोटो वह घर पर देखता था, सामने आने पर वह वैसा नहीं दिख रहा था, ये बानगी अकेले प्रदीप की नहीं है, उसके साथ चार और लोग बरी हुए जिन्हें इतने लंबे समय तक जमानत नहीं मिली थी, इनमे से आरोपी सुरेश मालिक ने अपने अधिवक्ता प्रमोद त्यागी के माध्यम से उच्चतम न्यायालय का रुख किया तब उच्चतम न्यायालय ने तीन माह में निस्तारण करने के आदेश दिए, मामले को जल्द सुनवाई के उच्चतम के निर्देश पर ट्रायल तेजी से हुआ, दो लोगों के लिए तो विधिक सेवा प्राधिकरण के वकीलों ने पैरवी की, अधिवक्ता प्रमोद त्यागी व नितिन निचोडिया बताते है कि मामले में उत्तम साक्ष्य न होने पर कड़कड़डूमा सत्र न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस परिस्थितिजन्य साक्ष्य को आधार बनाकर अपराध साबित करने का प्रयास कर रही थी, जिसकी वह कड़ी से कड़ी नहीं जोड़ पाई।

सत्र न्यायाधीश ने आदेश में कहा कि पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि आरोपी बनाए गए किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति के साथ देखा गया, जिसकी हत्या हुई थी।

मृतक के सिर से पार निकली गोली कार से बरामद बताई गई थी, लेकिन उसे बायोलाजिकल जांच के लिए नहीं भेजा गया, जिससे मालूम हो पाता कि उस पर खून के निशान थे या नहीं थे।

ज्योति नगर निवासी दिनेश कुमार अग्रवाल का अपहरण वर्ष 2014 में हुआ था। उनके बेटे ने ज्योति नगर थाना पुलिस में एफoआइoआर की थी।

यह भी आरोप लगाया था कि अपहरणकर्ता ने तीन करोड़ को फिरौती मांगी है। अगले दिन रोहतक जिले के खिंदावली गांव में दिनेश का शव मिला था। रोहतक पुलिस ने हत्या की प्राथमिकी कर शव का पोस्टमार्टम कराया था। बाद में जांच को दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया।

इस केस में दिल्ली के सुरेश मलिक, संजीव अरोड़ा, जहांगीर पुरी के प्रदीप उर्फ टीटू, रोहतक निवासी इंदरवेश और राकेश को गिरफ्तार किया गया था। तभी से पांचों न्यायिक हिरासत में रहे, इनको जमानत नहीं मिल पाई थी।

इनमें से सुरेश मलिक ने फरवरी 2023 में दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया लेकिन राहत नही मिली थी। यहां के बाद उसकी ओर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया था, वहां से जुलाई 2023 में विचरण न्यायालय को तीन माह में करने निपटान का निर्देश दिया गया था।

आरोपित सुरेश मलिक व प्रदीप को और से अधिवक्ता प्रमोद त्यागी व नितिन निचोड़िया, मोहित बंसल ने दलील दी कि मुवक्किलों से वस्तुओं की बरामदगी फर्जी है। अन्य आरोपितों की ओर से न्याय मित्र राजीव प्रताप सिंह और गौरव वशिष्ठ ने पैरवी की।

इन सभी को ओर से न्यायालय को अवगत कराया गया कि शव निर्वस्त्र मिलने की बात कही गई थी, लेकिन गांव के जिस व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दी उसने अपने बयान में शव पर कपड़े व अंगूठी होने की बात कही थी। पुलिस की कहानी में झोल था, इसीलिए सभी आरोपी निर्दोष साबित हुए।

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